गौ माता (पवित्र गाय माता) का महत्व
गौएं प्राणियों का आधार तथा कल्याण की निधि हैं। भूत और भविष्य गौओं के ही हाथ में हैं। वे ही सदा रहने वाली पुष्टि का कारण तथा लक्ष्मी की जड़ हैं। गौओं की सेवा में जो कुछ दिया जाता है, उसका फल अक्षय होता है। अन्न गौओं से उत्पन्न होता है, देवताओं को उत्तम हविष्य (घृत) गौएं देती हैं तथा स्वाहाकार (देवयज्ञ) और वषट्कार (इंद्रयाग) भी सदा गौओं पर ही अवलम्बित हैं। गौएं ही यज्ञ का फल देने वाली हैं। उन्हीं में यज्ञों की प्रतिष्ठा है।
ऋषियों को प्रात:काल और सायंकाल में होम के समय गौएं ही हवन के योग्य घृत आदि पदार्थ देती हैं। जो लोग दूध देने वाली गौ का दान करते हैं, वे अपने समस्त संकटों और पापों से पार हो जाते हैं। जिसके पास दस गौएं हों, वह एक गौ दान करे जो सौ गाएं रखता हो, वह दस गाएं दान करे और जिसके पास हजार गौएं मौजूद हों, वह सौ गाएं दान करे तो इन सबको बराबर ही फल मिलता है। जो सौ गौओं का स्वामी होकर भी अग्रिहोत्र नहीं करता, जो हजार गौएं रखकर भी यज्ञ नहीं करता तथा जो धनी होकर भी कंजूसी नहीं छोड़ता-ये तीनों मनुष्य अर्घ्य (सम्मान) पाने के अधिकारी नहीं हैं।
प्रात:काल और सायंकाल में प्रतिदिन गौओं को प्रणाम करना चाहिए। इससे मनुष्य के शरीर और बल की पुष्टि होती है। गोमूत्र और गोबर देखकर कभी घृणा न करें। गौओं के गुणों का कीर्तन करें। कभी उनका अपमान न करें। यदि बुरे स्वप्र दिखाई दें तो गोमाता का नाम लें। थूक न फैंकें। मल-मूत्र न त्यागें। गौओं के तिरस्कार से बचते रहें। अग्रि में गाय के घृत का हवन करें, उसी से स्वस्तिवाचन कराएं। गो-घृत का दान और स्वयं भी उसका भक्षण करें तो गौओं की वृद्धि होती है।गौओं को यज्ञ का अङ्ग और साक्षात यज्ञरूप बतलाया गया है। इनके बिना यज्ञ किसी तरह नहीं हो सकता। ये अपने दूध और घी से प्रजा का पालन-पोषण करती हैं तथा इनके पुत्र (बैत) खेती के काम और तरह-तरह के अन्न एवं बीज पैदा करते हैं, जिनसे यज्ञ सम्पन्न होते हैं और हव्य-कव्य का भी काम चलता है। इन्हीं से दूध, दही और घी प्राप्त होते हैं। ये गौएं बड़ी पवित्र होती हैं और बैल भूख-प्यास का कष्ट सह कर अनेकों प्रकार के बोझ ढोते रहते हैं। इस प्रकार गो-जाति अपने काम से ऋषियों तथा प्रजाओं का पालन करती रहती है।
उसके व्यवहार में शठता या माया नहीं होती। वह सदा पवित्र कर्म में लगी रहती है। इसी से ये गौएं हम सब लोगों के ऊपर निवास करती हैं। इसके सिवाय गौएं वरदान भी प्राप्त कर चुकी हैं तथा प्रसन्न होने पर वे दूसरों को भी वरदान देती हैं। गौएं सम्पूर्ण तपस्वियों से बढ़ कर हैं इसलिए भगवान शंकर ने गौओं के साथ रहकर तप किया था। जिस ब्रह्मलोक में सिद्ध ब्रह्मर्षि भी जाने की इच्छा करते हैं, वहीं ये गौएं चंद्रमा के साथ निवास करती हैं। ये अपने दूध, दही, घी, गोबर, चमड़ा, हड्डी, सींग और बालों से भी जगत का उपकार करती रहती हैं। इन्हें सर्दी, गर्मी और वर्षा का कष्ट विचलित नहीं करता। ये गौएं सदा ही अपना काम किया करती हैं। इसलिए ये ब्राह्मणों के साथ ब्रह्मलोक में जाकर निवास करती हैं। इसी से गौ और ब्राह्मण को विद्वान पुरुष एक बताते हैं।
गौएं परम पावन और पुण्यस्वरूपा हैं। इन्हें ब्राह्मणों को दान करने से मनुष्य स्वर्ग का सुख भोगता है। पवित्र जल से आचमन करके पवित्र होकर गौओं के बीच में गोमती-मंत्र ‘गोमा अग्रे विमां अश्वी’ का जप करने से मनुष्य अत्यंत शुद्ध एवं निर्मल (पापमुक्त) हो जाता है।विद्या और वेदव्रत में निष्णात पुण्यात्मा ब्राह्मणों को चाहिए कि वे अग्रि, गौ और ब्राह्मणों के बीच अपने शिष्यों को यज्ञतुल्य गोमती-मंत्र की शिक्षा दें। जो तीन रात तक उपवास करके गोमती मंत्र का जप करता है, उसे गौओं का महावरदान प्राप्त होता है।पुत्र की इच्छा वाले को पुत्र, धन चाहने वाले को धन और पति की इच्छा रखने वाली स्त्री को पति मिलता है। इस प्रकार गौएं मनुष्य की सम्पूर्ण कामनाएं पूर्ण करती हैं, वे यज्ञ का प्रधान अंग हैं, उनसे बढ़ कर दूसरा कुछ नहीं है।
"गाय से जुड़ी कुछ रोचक जानकारी"
- गौ माता जिस जगह खड़ी रहकर आनन्दपूर्वक चैन की सांस लेती है। वहाँ वास्तु दोष समाप्त हो जाते हैं।
- जिस जगह गौ माता खुशी से रभांने लगे उस जगह देवी देवता पुष्प वर्षा करते हैं।
- गौ माता के गले में घंटी जरूर बांधे ; गाय के गले में बंधी घंटी बजने से गौ आरती होती है।
- जो व्यक्ति गौ माता की सेवा पूजा करता है उस पर आने वाली सभी प्रकार की विपदाओं को गौ माता हर लेती है।
- गौ माता के खुर्र में नागदेवता का वास होता है। जहाँ गौ माता विचरण करती है उस जगह सांप बिच्छू नहीं आते।
- गौ माता के गोबर में लक्ष्मी जी का वास होता है।
- गौ माता कि एक आँख में सुर्य व दूसरी आँख में चन्द्र देव का वास होता है।
- गौ माता के दुध मे सुवर्ण तत्व पाया जाता है जो रोगों की क्षमता को कम करता है।
- गौ माता की पूँछ में हनुमानजी का वास होता है। किसी व्यक्ति को बुरी नजर हो जाये तो गौ माता की पूँछ से झाड़ा लगाने से नजर उतर जाती है।
- गौ माता की पीठ पर एक उभरा हुआ कुबड़ होता है, उस कुबड़ में सूर्य केतु नाड़ी होती है। रोजाना सुबह आधा घंटा गौ माता की कुबड़ में हाथ फेरने से रोगों का नाश होता है।
- एक गौ माता को चारा खिलाने से तैंतीस कोटी देवी देवताओं को भोग लग जाता है।
- गौ माता के दूध घी मक्खन दही गोबर गोमुत्र से बने पंचगव्य हजारों रोगों की दवा है। इसके सेवन से असाध्य रोग मिट जाते हैं।
- जिस व्यक्ति के भाग्य की रेखा सोई हुई हो तो वो व्यक्ति अपनी हथेली में गुड़ को रखकर गौ माता को जीभ से चटाये गौ माता की जीभ हथेली पर रखे गुड़ को चाटने से व्यक्ति की सोई हुई भाग्य रेखा खुल जाती है।
- गौ माता के चारों चरणों के बीच से निकल कर परिक्रमा करने से इंसान भय मुक्त हो जाता है।
- गौ माता सर्व सुखों की दातार है।
हे मां आप अनंत ! आपके गुण अनंत ! इतना मुझमें सामर्थ्य नहीं कि मैं आपके गुणों का बखान कर सकूँ।
गौ माता के 108 नाम
1. कपिला
2. गौतमी
3. सुरभी
4. गौमती
5. नंदनी
6. श्यामा
7. वैष्णवी
8. मंगला
9. सर्वदेव वासिनी
10. महादेवी
11. सिंधु अवतरणी
12. सरस्वती
13. त्रिवेणी
14. लक्ष्मी
15. गौरी
16. वैदेही
17. अन्नपूर्णा
18. कौशल्या
19. देवकी
20. गोपालिनी
21. कामधेनु
22. आदिति
23. माहेश्वरी
24. गोदावरी
25. जगदम्बा
26. वैजयंती
27. रेवती
28. सती
29. भारती
30. त्रिविद्या
31. गंगा
32. यमुना
33. कृष्णा
34. राधा
35 . मोक्षदा
36. उतरा
37. अवधा
38. ब्रजेश्वरी
39. गोपेश्वरी
40.कल्याणी
41.करुणा
42. विजया
43. ज्ञानेश्वरी
44. कालिंदी
45. प्रकृति
46. अरुंधति
47. वृंदा
48. गिरिजा
49.मनहोरणी
50. संध्या
51. ललिता
52. रश्मि
53 . ज्वाला
54. तुलसी
55. मल्लिका
56 . कमला
57. योगेश्वरी
58. नारायणी
59. शिवा
60. गीता
61. नवनीता
62.अमृता अमरो
63. स्वाहा
64. धंनजया
65. ओमकारेश्वरी
66. सिद्धिश्वरी
67. निधि
68. ऋद्धिश्वरी
69. रोहिणी
70. दुर्गा
71. दूर्वा
72. शुभमा
73. रमा
74. मोहनेश्वरी
75. पवित्रा
76. शताक्षी
77. परिक्रमा
78. पितरेश्वरी
79. हरसिद्धि
80. मणि
81. अंजना
82. धरणी
83. विंध्या
84. नवधा
85. वारुणी
86. सुवर्णा
87. रजता
88. यशस्वनि
89. देवेश्वरी
90. ऋषभा
91. पावनी
92. सुप्रभा
93. वागेश्वरी
94. मनसा
95. शाण्डिली
96. वेणी
97. गरुडा
98. त्रिकुटा
99. औषधा
100. कालांगि
101. शीतला
102. गायत्री
103. कश्यपा
104. कृतिका
105. पूर्णा
106. तृप्ता
107. भक्ति
108. त्वरिता